Loan Tips : लोन चाहिए तो सिबिल स्कोर ही नहीं इन चीजों को भी रखें ठीक

जब भी लोन की जरूरत पड़ती है तो सबसे पहले सिबिल स्कोर को चेक करते हैं। क्योंकि लोगों का मानना है कि बैंक सिर्फ क्रेडिट स्कोर के आधार ही लोन देता है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसके साथ इन चीजों को भी ठीक रखना जरूरी है।

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Loan Tips : लोन चाहिए तो सिबिल स्कोर ही नहीं इन चीजों को भी रखें ठीक


Hindi News Club (ब्यूरो)। Loan Tips - हर किसी को जीवन में पर्सनल लोन, होम लोन, कार लोन आदि की जरूरत तो पड़ती ही है। ऐसे में सभी ये कहते हैं कि अगर आपका सिबिल स्कोर (CIBIL Score) अच्छा है तो लोन आसानी से मिल जाएगा। हालांकि इस बात में कोई दोराय नहीं है लेकिन यह पूरी तरह से भी सच नहीं है। जब कोई बैंक किसी शख्स को पर्सनल लोन (personal loan) देता है तो वह सिर्फ उसका सिबिल स्कोर नहीं देखता, बल्कि 3 तरह के रेश्यो भी चेक करता है। इन सब से बैंक ये सुनिश्चित करना चाहता है कि आप बैंक के लोन के पैसे समय से चुका पाएंगे या नहीं। आइए नीचे खबर में जानते हैं सिबिल स्कोर के अलावा बैंक कौन से रेश्यो चेक करता है।

1- Debt-to-Income (DTI) Ratio


पर्सनल लोन लेने के लिए सिबिल स्कोर के बाद डेट टू इनकम रेश्यों जरूरी होता है। दरअसल, बैंक लोन देने से पहले डे-टू- इनकम रेश्यो को चेक करता है। यह रेश्यो मंथली डेट पेमेंट और आपकी ग्रॉस सैलरी की तुलना कर के कैल्कुलेट किया जाता है। इसका मतलब है कि जितना कम DTI रेश्यो होगा, आपको लोन मिलने के चांस उतने ही ज्यादा होते हैं। इससे बैंक को यह पता चला है कि आपने पहले से लोन लिया है या नहीं, और सैलरी में से आपके हाथ में कितना पैसा बचता है। 


2- EMI/NMI Ratio


अब बारी आती है EMI/NMI रेश्यो की, इसके  जरिए बैंक इस बात का कैल्कुलेशन करता है कि आपकी नेट मंथली इनकम का कितना हिस्सा मौजूदा ईएमआई और प्रस्तावित लोन की ईएमआई पर खर्च होगा। अगर आपकी EMI/NMI 50-55 फीसदी तक है, तब तो ठीक है, लेकिन उससे अधिक रेश्यो होने पर बैंक आपको लोन देने से मना कर सकता है। लेकिन इसके बाद भी बैंक आपको लोन देते हैं तो वह अक्सर अधिक ब्याज दर चार्ज करते हैं।

3- Loan-to-Value Ratio (LTV)


लोन की कड़ी में Loan-to-Value Ratio भी अहम है। बैंकों कि ओर से इस रेश्यो का कैल्कुलेशन खासतौर पर हाउसिंग लोन के मामले में किया जाता है। इस रेश्यो की मदद से रिस्क को समझना आसान हो जाता है। LTV रेश्यो दिखाता है कि आपके लोन की असेट या कोलेट्रल की तुलना में कितनी वैल्यू है। इससे लोन को सिक्योर करने में मदद मिलती है। इस जानकारी का इस्तेमाल कर्ज देने वाला बैंक जरूरी नियम और शर्तें बनाने में करता है। 

 

सिबिल स्कोर भी चेक करते हैं बैंक

 

यह एक तीन अंकों की संख्या है या यूं कहें कि स्कोर है। इसकी रेंज 300 से लेकर 900 अंकों तक होती है। यह आपके लोन लेने की योग्यता को दिखाता है। आपके पुराने लोन, क्रेडिट कार्ड (credit card) के बिल आदि के आधार पर यह संख्या तय होती है। अगर आप अपने सारे कर्जों और कार्ड बिल को चुकाते रहते हैं तो आपका सिबिल स्कोर (CIBIL Score) बेहतर होता जाता है, जबकि अगर आप कोई डिफॉल्ट करते हैं तो आपका सिबिल स्कोर खराब होता जाता है। 

अच्छे सिबिल स्कोर के क्या हैं फायदे

 

अगर आपका सिबिल स्कोर (CIBIL Score Good) अच्छा है तो इसके कई फायदे होते हैं। हर बैंक लोन देने से पहले व्यक्ति के सिबिल स्कोर को चेक करता है। ऐसे में आपको लोन आसानी से और सस्ता मिल सकता है। यहां तक कि आपको कई बार प्री-अप्रूव्ड लोन ऑफर भी मिल सकता है और आपको इंस्टेंट लोन यानी चंद मिनटों में खाते में पैसे आने की सुविधा भी मिल सकती है। 

सिबिल स्कोर खराब होने के नुकसान

अगर आपका सिबिल स्कोर खराब है तो बैंक लोन देने से मना कर सकता है। इसके साथ ही  बैंक से जुड़े तमाम कामों में आपको दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। खराब सबिल स्कोर होने के बावजूद बैंक लोन देता है तो ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा।  इतना ही नहीं ज्यादा प्रीमियम भी चुकाना पड़ सकता है । इनके अलावा आपको होम-कार लोन लेने में परेशानी हो सकती है। यहां तक कि लोन मिलने में देरी भी हो सकती है। 

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